Search
Close this search box.

ब्रांड के साथ ये भेदभाव क्यों?

ब्रांड के साथ ये भेदभाव क्यों? 1

ब्रांड के साथ ये भेदभाव क्यों?

आज के समय में हिन्दी भाषा का ज्ञान कहने को तो अधिकतर लोगों को है, लेकिन लिखना व पढ़ना संभवतः कम लोगों को ही आता है। बोलना और समझना एक बात है, लेकिन जब लिखने की बात आती है, और उससे भी ज़्यादा जब व्यावसायिक दुनिया के लिए सही और सारगर्भित लिखना हो तो अक्सर ग़लतियाँ होना आम बात है। दुःख तब होता है जब बड़े बड़े ब्रांड और कम्पनियों के विज्ञापनों के हेडलाइन में ही स्पेलिंग की ग़लती देखने को मिलती हैं। ये बात ठीक है कि आज के समय व परिपेक्ष में हम शुद्ध हिन्दी का प्रयोग नहीं कर सकते, क्योंकि वो अधिकतर लोगों की समझ के परे है, लेकिन आमतौर पर बोली जाने वाली हिन्दुस्तानी भाषा या आजकल फ़ैशन में आयी हिंग्लिश तो कम से कम सही ही लिखी जानी चाहिये। लेकिन उसमें भी जब मूर्खतापूर्ण ग़लतियाँ नज़र आती हैं तो ज़्यादा दुःख होता है। आज की हिन्दी या हिन्दुस्तानी को कम से कम उसके नए रूप में ही सही मगर सही तो लिखा ही जाना चाहिये।

रोज़ समाचार पत्र में जब कोई विज्ञापन देखता हूँ किसी न किसी में कोई गलती नज़र आ ही जाती है, फिर चाहे वो किसी जाने माने ब्रांड का विज्ञापन हो या सरकारी।

शायद कुछ लोग ऐसा सोचते हों कि  ये कितनी छोटी बात है और इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है, क्योंकि बात तो लोगों तक पहुँच ही गयी। उनसे मेरा सिर्फ़ इतना ही कहना है कि जब आप अपने कपड़ों, साफ़ सफ़ाई और भाषा का इतना ख़याल रखते हैं तो फिर अपने ब्रांड के साथ ये भेदभाव क्यों?

मुझे बताने की ज़रूरत नहीं की इनमें गलती क्या है क्योंकि ग़लती भी खुद को चिल्ला चिल्ला के बता रही है

Leave a Comment